पितृ दोष निवारण

पितृ दोष निवारण पूजा त्र्यंबकेश्वर

Pitru Dosh Puja Trimbakeshwar

Pitru Dosh Niwaran, Pitru Dosh Niwaran puja

पितृ दोष :

कुंडली में एक अहम दोष पितृ दोष(Pitra Dosha in Kundali) को भी माना जाता है। कई लोग इसे पित्ररों यानि पूर्वजों के बुरे कर्मों का फल मानते हैं तो कुछ का मानना है कि अगर पित्ररों का दाह-संस्कार सही ढंग से ना हो तो वह नाखुश होकर हमें परेशान करते हैं। कुंडली में पितृ दोष तब होता है जब सूर्य, चन्द्र, राहु या शनि में दो कोई दो एक ही घर में मौजुद हो। सामान्यत: व्यक्ति का जीवन सुख -दुखों से मिलकर बना है. पूरे जीवन में एक बार को सुख व्यक्ति का साथ छोड भी दे, परन्तु दु:ख किसी न किसी रुप में उसके साथ बने ही रहते है, फिर वे चाहें, संतानहीनता, नौकरी में असफलता, धन हानि, उन्नति न होना, पारिवारिक कलेश आदि के रुप में हो सकते है . पितृ दोष को समझने से पहले पितृ क्या है इसे समझने का प्रयास करते है .

पितृ क्या है?

पितरों से अभिप्राय व्यक्ति के पूर्वजों से है . जो पित योनि को प्राप्त हो चुके है . ऎसे सभी पूर्वज जो आज हमारे मध्य नहीं, परन्तु मोहवश या असमय मृ्त्यु को प्राप्त होने के कारण, आज भी मृ्त्यु लोक में भटक रहे है . अर्थात जिन्हें मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई है, उन सभी की शान्ति के लिये पितृ दोष निवारण (Pitra Dosha Niwaran) उपाय किये जाते है . ये पूर्वज स्वयं पीडित होने के कारण, तथा पितृ्योनि से मुक्त होना चाहते है, परन्तु जब आने वाली पीढी की ओर से उन्हें भूला दिया जाता है, तो पितृ दोष उत्पन्न होता है

पितृ दोष कैसे बनता है?

नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है . शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है . व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है .

पितृ दोष के कारण :

पितृ दोष (Pitra Dosha) उत्पन्न होने के अनेक कारण हो सकते है . जैसे:- परिवार में अकाल मृ्त्यु हुई हों, परिवार में इस प्रकार की घटनाएं जब एक से अधिक बार हुई हों . या फिर पितरों का विधी विधान से श्राद्ध न किया जाता हों, या धर्म कार्यो में पितरों को याद न किया जाता हो, परिवार में धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न न होती हो, धर्म के विपरीत परिवार में आचरण हो रहा हो, परिवार के किसी सदस्य के द्वारा गौ हत्या हो जाने पर, या फिर भ्रूण हत्या होने पर भी पितृ दोष व्यक्ति कि कुण्डली में नवम भाव में सूर्य और राहू स्थिति के साथ प्रकट होता है . नवम भाव क्योकि पिता का भाव है, तथा सूर्य पिता का कारक होने के साथ साथ उन्नती, आयु, तरक्की, धर्म का भी कारक होता है, इसपर जब राहू जैसा पापी ग्रह अपनी अशुभ छाया डालता है, तो ग्रहण योग के साथ साथ पितृ दोष बनता है . इस योग के विषय में कहा जाता है कि इस योग के व्यक्ति के भाग्य का उदय देर से होता है . अपनी योग्यता के अनुकुल पद की प्राप्ति के लिये संघर्ष करना पडता है . हिन्दू शास्त्रों में देव पूजन से पूर्व पितरों की पूजा करनी चाहिए . क्योकि देव कार्यो से अधिक पितृ कार्यो को महत्व दिया गया है . इसीलिये देवों को प्रसन्न करने से पहले पितरों को तृ्प्त करना चाहिए . पितर कार्यो के लिये सबसे उतम पितृ पक्ष अर्थात आश्चिन मास का कृ्ष्ण पक्ष समझा जाता है .

पितृ दोष शान्ति के उपाय :

आश्विन मास के कृ्ष्ण पक्ष में पूर्वजों को मृ्त्यु तिथि अनुसार तिल, कुशा, पुष्प, अक्षत, शुद्ध जल या गंगा जल सहित पूजन, पिण्डदान, तर्पण आदि करने के बाद ब्राह्माणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन, फल, वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करने से पितृ दोष (Pitra Dosha) शान्त होता है . इस पक्ष में एक विशेष बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह है कि जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की मृ्त्यु की तिथि न मालूम हो, तो ऎसे में आश्विन मास की अमावस्या को उपरोक्त कार्य पूर्ण विधि- विधान से करने से पितृ शान्ति होती है . इस तिथि को सभी ज्ञात- अज्ञात, तिथि- आधारित पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है .

पितृ दोष निवारण :

  • पीपल के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है . इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है . या फिर प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है .
  • प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है.
  • सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है.
  • सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कूंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है.
  • सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya) के दिन पितृ दोष निवारण पूजा करने से भी पितृ दोष में लाभ मिलाता है . आने वाले वर्षों में सोमवती अमावस्या की तिथिया निम्न हैं

पितृ दोष से युक्त जोड़े को संतान प्राप्ति में बेहद कठिनाई होती है। गर्भ ठहरने के बाद लगातार गर्भपात की समस्या आने पर इस दोष पर विचार कर लेना चाहिए। पितृ दोष से मुक्ति के कुछ विशेष उपाय:

  • इस दोष से मुक्ति के लिए पितृ पक्ष में पित्ररों का दान और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
  • श्रीकृष्ण-मुखामृत गीता का पाठ करना चाहिए।
  • पीपल के पेड पर जल, पुष्प, दूध, गंगाजल, काला तिल चढ़ाकर अपने स्वर्गीय परिजनों को याद कर उनसे माफी और आशीष मांगना चाहिए।
  • रविवार के दिन गाय को गुड़ या गेंहू खिलाना चाहिए।



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